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सागर-तट : सांध्य तारा / अज्ञेय

     मिटता-मिटता भी मिटा नहीं आलोक,
     झलक-सी छोड़ गया सागर पर।
     वाणी सूनी कह चुकी विदा : आँखों में
     दुलराता आलिंगन आया मौत उतर।

     एक दीर्घ निःश्वास :
     व्योम में सन्ध्या-तारा
     उठा सिहर।

हांगकांग शिखर, 19 जनवरी, 1958