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साथ जब रुसवाइयाँ होंगी / पुरुषोत्तम प्रतीक

साथ जब रुसवाइयाँ होंगी
फिर कहाँ तनहाइयाँ होंगी

आपके इन आइनों में हम
हम नहीं, परछाइयाँ होंगी

पास में कुछ देर तो बैठो
फिर कहाँ अमराइयाँ होंगी

हादसों के बाद क्या होगा
फिर वही शहनाइयाँ होंगी

इस नदी में डूबकर देखो
हर जगह गहराइयाँ होंगी

तुम हिमालय हो मगर सुन लो
और भी ऊँचाइयाँ होंगी

हर महक रस रंग के पीछे
फूल की अँगड़ाइयाँ होंगी