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सावधान / विनोद शर्मा

सावधान
वे दाखिल हो चुके हैं धरती के स्वर्ग में
वे जो शैतान के दूत हैं
मौत के फरिश्ते हैं

वे जो करना चाहते हैं सूर्य को बहिष्कृत
और चांद को सरेआम कत्ल
वे जो घोलना चाहते हैं जहर हवाओं में,
सांसों में, खून में, पानी में
माताओं दूध में

भरना चाहते हैं विलाप
दिलों की धड़कनों में, गीतों में
बोना चाहते हैं बारूद खेतों में

सावधान
घृणा और आतंक के ये सौदागर चाहते हैं
कि हर आदमी के दिल में
विश्वास की जगह ले ले शक
कि चिनार के बदन पर मारने लगे चाबुक पुरवाई
कि झीलों में, तालों में खिलने लगें
कमलों की जगह नरमुंड
और बलात्कार के डर से तितलियां फूलों के पास
और नदियां सागर की ओर जाना छोड़ दें

और मदरसे में बच्चों के मुख से निकला करे
‘क’ से कश्मीर की जगह ‘क’ से कत्ल
मगर ऐसा कुछ न हुआ और कभी होगा भी नहीं
क्योंकि धरती के इस स्वर्ग ने पहना हुआ है
हब्बा खातून की कविता का कवच
क्योंकि कश्मीर महज एक भूखण्ड नहीं है
देवताओं की क्रीड़ास्थली है
सौन्दर्य की देवी का खयाल है, भारत का संकल्प है
वो नगमा है जिसे प्रकृति ने लिखा
धरती के भोजपत्र पर
सौन्दर्य की खुशबू है
सोए हुए बच्चे के चेहरे पर
झिलमिलाती मासूमियत की आभा
आदम और हव्वा के पहले स्पर्श की अनुभूति है
स्वर्ग के अस्तित्व की सार्थकता का अहसास है
कश्मीर की धरती
जन्नत की हूर
चश्मे बद्दूर।