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सीता: एक नारी / चतुर्थ सर्ग / पृष्ठ 12 / प्रताप नारायण सिंह

श्रीराम का वनवास दासी बुद्धि ने ही था जना
जो अंततः सम्राट के देहांत का कारण बना
 
थी सति-परीक्षा पुरजनो ने अवध के देखी नहीं
अब नीतियों पर राज्य के नित उँगलियाँ हैं उठ रहीं

सर्वत्र चर्चा का विषय यह बन रहा कुविचार है-
श्रीराम ने बस मोहवश सिय को किया स्वीकार है

हैं बाध्य प्रभु, जन-मान्यता का मान रखने के लिए
निज प्राणघाती, विवश थे, आदेश करने के लिए

लक्ष्मण-वचन से राम के प्रति रोष कुछ तो कम हुआ
लेकिन अकारण दण्ड पाने का न दुःख मद्धम हुआ

हे लखन ! क्या नारी बनी दुःख भोगने को ही सदा
अपमान, आँसू, कष्ट क्या उसकी यही है संपदा

करता अपहरण एक, रखता दुसह कारावास में
फिर नीति की ले आड़ दूजा है डुबाता त्रास में

मारा गया रावण, उचित था दण्ड यह उसके लिए
अपराध मेरा कौन सा, वनवास यह जिसके लिए

कारण प्रमाणित कर सकोगे किस तरह वनवास का
यह पृष्ठ कालिख से पुता रघुवंश के इतिहास का

था राक्षसों के बीच रावण ने रखा मुझको वहाँ
पर आज तो भेजा गया है मध्य पशुओं के, यहाँ