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स्वर कहाँ जो गीत गाऊँ / जनार्दन राय

स्वर कहाँ जो गीत गाऊँ?
जा रहे हो आज तुम
नाता हमारा तोड़ कर।
जा रहे हो दूर हम से
दिल हमारा तोड़ कर।
है कहाँ सामर्थ्य जो
मैं आज तेरा प्यार पाऊँ?
स्वर कहाँ जो गीत गाऊँ?

पा तुम्हारे प्यार को,
संसार का दुख भार झेला।
प्राप्त कर सहयोग तेरा,
निज व्यथा का भार झेला।
आज गाते छोड़कर,
कैसे भला मैं गीत गाऊँ?
स्वर कहाँ जो गीत गाऊँ?

याद कर सेवा तुम्हारी,
आँख से गिरता है पानी।
भूल मैं पाता नहीं
सहवास की तेरी कहानी।
कह रहा निष्ठुर विधाता,
अब तुझे मैं भूल जाऊँ।
स्वर कहाँ जो गीत गाऊँ?

जिन्दगी के दुख भरे दिन
टल गये तेरी दुआ से।
जिन्दगी के सुख भरे दिन
आ गये तेरी कृपा से।
आज मैं तेरे बिना
कैसे भला अब शक्ति पाऊँ?
स्वर कहाँ जो गीत गाऊँ?

भक्ति तेरी याद कर
संसार को मैं भूल जाता।
शक्ति तेरी प्राप्त कर
पथ से हमारा शूल जाता।
आज कंटकमय विपिन में
पाँव कैसे मैं बढ़ाऊँ?
स्वर कहाँ जो गीत गाऊँ?

वार तुमने तो दिया
तन मन सदा मेरे लिये।
कष्ट झेला जान कर भी
खेल कर मेरे लिये।
आज जाते रुठकर हो,
अब कहां सम्मान पाऊँ?
स्वर कहाँ जो गीत गाऊँ?

चाहता तुमको छिपा लूँ,
निज नयन में आज बढ़ कर।
चाहता तुमको बिठालूँ,
द्वार हिय के बन्द कर-कर।
पर जगत निष्ठुर बड़ा है,
अश्रु अब केवल बहाऊँ।
स्वर कहाँ जो गीत गाऊँ?

चाहता शास्वत जगत में
अमरता का राग छेडूँ।
हर पलक तेरे मिलन की-
कामना का गीत गाऊँ।
ताल-लय जब ले चले
तो अब कहां संगीत गाऊँ?
स्वर कहाँ जो गीत गाऊँ?

राग बजने दे मिलन के,
दूर रहकर भी नयन से।
चांद भी देखे हमारे
प्रेम को अपने गगन से।
खुश रहो आगे बढ़ो,
अरमान मैं इतना ही पाऊँ?
स्वर कहाँ जो गीत गाऊँ?

-दिघवारा,
28.6.1958 ई.