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स्वागत-गान - 2 / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’


सादर हम स्वागत करते हैं।
बरसाने के लिए कल कुसुम मंजुल अंजलि में भरते हैं।
अंतरज्योति जगाकर उसकी क्यों न जाय आरती उतारी;
जिस प्रभु की प्रभुता अवलोके हुई जन-विबुधता बलिहारी।
जिसने बन आनंद-वन-अधिप मन को आनंदित करडाला;
क्यों न निछावर नयन करे उस पर अपनी मुक्ता की माला।