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हट जाओ / अज्ञेय

तुम
चलने से पहले
जान लेना चाहते हो कि हम
जाना कहाँ चाहते हैं।
और तुम
चलने देने से पहले
पूछ रहे हो क्या हमें
तुम्हारा
और तुम्हारा मात्र
नेतृत्व स्वीकार है?
और तुम हमारे चलने का मार्ग बताने का
आश्वासन देते हुए
हम से प्रतिज्ञा चाहते हो
कि हम रास्ते भर
तुम्हारे दुश्मनों को मारते चलेंगे।
तुम में से किसी को हमारे कहीं पहुँचने में
या हमारे चलने में या हमारी टाँगें होने
या हमारे जीने में भी
कोई दिलचस्पी नहीं है :
उस में तुम्हारा कोई न्यास नहीं है।
तुम्हारी गरज़ महज़
इतनी है कि जब हम चलें तो
तुम्हारे झंडे ले कर
और कहीं पहुँचें तो वहाँपहले से
(और हमारे अनुमोदन के दावे के साथ)
तुम्हारा आसन जमा हुआ हो।
तुम्हारी गरज़ हमारी गरज़ नहीं है
तुम्हारे झंडे हमारे झंडे नहीं हैं।
तुम्हारी ताक़त हमारी ताक़त नहीं है बल्कि
हमें निर्वीर्य करने में लगी है।
हमें अपनी राह चलना है।
अपनी मंज़िल पहुँचना है
हमें चलते-चलते वह मंज़िल बनानी है
और तुम सब से उसकी रक्षा की
व्यवस्था भी हमें चलते-चलते करनी है।
हम न पिट्ठू हैं न पक्षधर हैं
हम हम हैं और हमें
सफ़ाई चाहिए, साफ़ हवा चाहिए
और आत्म-सम्मान चाहिए जिस की लीक
हम डाल रहे हैं :
हमारी ज़मीन से हट जाओ।