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हमार डोमा काका अब डोमा मियाँ काहे? / संतोष कुमार

आजुओ हमार गाँव
जाति धरम के जंजाल में हेराइल नइखे।
शहरी ताम-झाम से घेराइल नइखे।
अपनापन के फुल-पात
मउराइल नइखे।
काहे कि इ
ढेर पढ़ला लिखला के बेमारी

धरम-करम के ढकोसला से बचल बा।
काहे कि
आजुओ हमरा गाँव में जाति-धरम से हटके भाव
रचल-बसल बा।
आजुओ डोमा काका
केहू के फूफा
केहू के मामा
केहू के भइया
त केहू के सार लागेलें।
हमरा त उ अकेले
कूल्ह नाता रिश्ता के
संसार लागेलें।
कहे के त उ हउएँ मुसलमान
बाकिर वाह रे हमार गाँव के ईमान
आजहूँ हिन्दू के कूल्ह पूजा पाठ
अठजाम
शादी बिआह के उहे निभावेलें
चउका पूरे लें।
आम के पुलई बान्हेले
आसनी लगावेलें
दूल्हा-दुल्हिन के
गाँठ बान्हेलें।
डोमा काका त हवन मुसलमान
बाकिर वाह रे हमार गाँव
केहू कुछुओ
ना कहल, ना सोचल।
कहियो
भगवान ना छूअइलें, ना रिसीअइलें
अचके।
फिर जानी जे
कवन नया हवा बहल
कि नेह-छोह आ अपनापन के
डेहरी ढहल
अब कुछु लोग उनका के
नया विशेषण देत बा
डोमा मियाँ' !
हम सुननी त
बुझाइल कि मेल-जोल
अउर मोहब्बत के धोती फाटल जाता का?
आदमियत के जाति धरम के आरी से
काटल जाता का?
एक दिन आँखि में लोर कइले
मुड़ी पर
पेटी मोटरी धइले
अनमुहाए
काकी के संगे
गाँव से निकसत जात रहले
डोमा काका।
उनकर मन रोअत रहे
डहकत रहे
फिकिर इहे कि 'डोमा' काका से डोमा मियाँ कब से
आ काहे हो गइलें?
सात पुस्त इहें जियल
मेल-मोहब्बत के पुआ पूरी खइलस
सेवई पियल
फिर ई का हो गइल?
माथ ठेठावत रहलें
बाकिर केहू से किछऊ ना बतावत रहलें
एतने में केहू के टोके के आवाज सुनले
" के ह हो? रुक...
अन्हारे अनमुहाए कहवाँ के चढ़ाई बा"
टोकवइया आउर केहू ना सरपंच जी रहले
हमार बाबा
सज्जी गाँव के बाबा।
दादा पुछ्लें, "का हो? कहवां जात बाड़?"

डोमा काका रोलइले
कहलें
"का रहिए गइल
जब हम डोमा काका से डोमा मियाँ हो गइनी"
सरपंच बाबा कहलें
"ना भाई / तू कतहीं ना जइब
ना तूं, ना भाउजाई
संगे संगे
जीयल जाई
एके कटोरा में पारा-पारी सनेह
के पानी पियल जाई
जबले हम जीयब
नेह के लुगरी सियब
लउट$
इ सुनत / ऊपर अल्लाह भा भगवान
लेत रहे लोग मुस्कान
साइत / एही में नू जिएला
आपन
हिंदुस्तान
हिंदुस्तान
हिंदुस्तान।