Last modified on 29 जून 2011, at 15:30

महफ़िल में हमसे आपने पर्दा किया तो क्या / अर्श मलसियानी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:30, 29 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्श मलसियानी }} {{KKCatGhazal}} <poem> अपनी निगाहे-शोख़ से छु…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अपनी निगाहे-शोख़ से छुपिये तो जानिए
महफ़िल में हमसे आपने पर्दा किया तो क्या?

सोचा तो इसमें लाग शिकायत की थी ज़रूर
दर पर किसी ने शुक्र का सज़्दा किया तो क्या?

ऐ शैख़ पी रहा है तो ख़ुश हो के पी इसे
इक नागवार शै को गवारा किया तो क्या?