Last modified on 10 सितम्बर 2012, at 10:41

गोकुल के कुल के गली के गोप गाँवन के / पद्माकर

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:41, 10 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्माकर }} <poem> गोकुल के,कुल के,गली क...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गोकुल के,कुल के,गली के,गोप गाँवन के,
          जौ लगि कछू को कछू भाखत भनै नहीं .
कहै पद्माकर परोस पिछ्वारन के,
          द्वारन के दौरे गुन औगुन गनै नहीं.
तौं लौं चलि चातुर सहेली!याही कोद कहूँ,
          नीके कै निहारै ताहि,भरत मनै नहीं.
हौं तौ श्याम रंग में चोराई चित चोराचोरी,
          बोरत तौ बोरयो,पै निचोरत बनै नहीं.