बड़ी गर्दिश में तारे थे, तुम्हारे भी हमारे भी ।
अटल फिर भी इरादे थे, तुम्हारे भी हमारे भी ।
हमारी ग़लतियों ने उसकी आमद रोक दी वरना,
शजर पर फल तो आते थे, तुम्हारे भी हमारे भी ।
हमें ये याद रखना है बसेरा है जहाँ सच का,
उसी नगरी से नाते थे, तुम्हारे भी हमारे भी ।
सिरे से भूल बैठे हैं उसे हम दोनों ‘हस्ती' जी,
क़दम जिसने सँभाले थे, तुम्हारे भी हमारे भी ।
शहादत माँगता था वक़्त तो हमसे भी ‘हस्ती’ जी,
मगर लब पर बहाने थे, तुम्हारे भी हमारे भी ।