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गुलशन में लेके चल किसी सहरा / इब्राहीम 'अश्क़'

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गुलशन में लेके चल किसी सहरा में ले के चल
ऐ दिल मगर सुकून की दुनिया में ले चल

कोई तो होगा जिसको मेरा इंतज़ार है
कहना है दिल के शहर-ए-तमन्ना में ले के चल

ये प्यास बुझ न पाई तो मैं डूब जाउँगा
साहिल से दूर तो मुझे दरया में ले के घल

पहचानता नहीं है मेरा नाम 'कैस' है
ऐ खिज़्र-ए-राह कूचा-ए-लैला में ले के चल