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दिन बीता, पर नहीं बीतती साँझ / नामवर सिंह

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दिन बीता,
पर नहीं बीतती,
नहीं बीतती साँझ

नहीं बीतती,
नहीं बीतती,
नहीं बीतती साँझ

ढलता-ढलता दिन
दृग की कोरों से ढुलक न पाया

मुक्त कुन्तले !
व्योम मौन मुझ पर तुम-सा ही छाया

मन में निशि है
किन्तु नयन से
नहीं बीतती साँझ