महव-ए-नज़्ज़ारा-ए-हैरत है हवा पहली बार
मुझपे दरवाज़ा-ए-महताब खुला पहली बार
अब न एहसान करें मुझपे ये काली रातें
इस अँधेरे में जला कोई दिया पहली बार
अब धनक रंग बहुत साफ़ नज़र आते हैं
अपने आईने में आई जिला पहली बार
इक हक़ीक़त ने किया ख़्वाब-सा जादू मुझ पर
और मैं देर तलक सोता रहा पहली बार
और फिर दस्त-ए-जुनूँ मुझको बहुत याद आया
चाक-ए-दामाँ जो अभी मैंने सिया पहली बार