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गई दिल से यूँ बेक़रारी गई / 'महताब' हैदर नक़वी

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गई दिल से यूँ बेक़रारी गई
कि ज्यों जान, तन से हमारी गई
 
हुआ दर्द सीने से ग़ायब हुआ
जो छाई थी, वो सोगवारी गई
 
चली ऐसी बाद-ए-ख़िज़ानी चली
कि मौज-ए-हवा-बहारी1 गई
 
इसी हार में जीत की बात अहै
सो बाज़ी महब्बत की हारी गई
 
है पेशा सुख़न का समझ से परे
रही कुछ कि इज़्ज़त हमारी गई

1-वसंत की हवा