Last modified on 29 अगस्त 2013, at 17:57

आलिंगन / रति सक्सेना

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:57, 29 अगस्त 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आलिंगनः खत की आखिरी पंक्ति
आलिंगनः मैंने पढ़ा, पहली पंक्ति की तरह
भाल के ऐन ऊपर सिरे के बीचो- बीच
सुलग उठा एक सिरा नीन्द का

आलिंगनः दर्द जाग उठा
आलिंगनः नीन्द बुदबुदाई
आलिंगनः मौत मुस्कुराई

नसनस चटख उठी
मैं खिल उठी कनेर की कली बन