Last modified on 21 नवम्बर 2013, at 07:11

इस दश्त नवर्दी में जीना बहुत आसाँ था / अतीक़ुल्लाह

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:11, 21 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अतीक़ुल्लाह }} {{KKCatGhazal}} <poem> इस दश्त नव...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इस दश्त नवर्दी में जीना बहुत आसाँ था
हम चाक गरेबाँ थे सर पर कोई दामाँ था

हम से भी बहुत पहले आया था यहाँ कोई
जब हम ने क़दम रक्खा ये ख़ाक-दाँ वीराँ था

उड़ते हुए फिरते थे आवारा ग़ुबारों से
वो वक़्त था जब उस के लौट आने का इम्काँ था

ये राह-ए-तलब यारो गुमराह भी करती है
सामान उसी का था जो बे-सर-ओ-सामाँ था