Last modified on 16 मई 2014, at 16:19

आज ललन की होत सगाई / परमानंददास

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:19, 16 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परमानंददास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आज ललन की होत सगाई ।
आवो गोपी जन मिल गावो मंगलचार बधाई ॥१॥
चोटी चुपरू गु्हू सुत तेरी, छाडों चंचलताई।
वृषभान गोप टीको दे पठयो सुंदर जान कन्हाई ॥२॥
जो तुमको या भात देखहें, करहे कहा बढाई ।
पहरे बसन भूषण सुंदर, उनको देवो दिखाई ॥३॥
नख शिख अंग सिंगार महर मन, मोतिन की माला पहराई ।
बेठे राय रतन चोकी पर, नर नारिन की भीर सुहाई ॥४॥
विप्र प्रवीन तिलक कर मस्तक, अक्षत चाप लियो अपनाई ।
बाजत ढोल भेरी और महुवर, नोबत ध्वनि घनघोर बजाई ॥५॥
फूली फिरत यशोदारानी, वार कुंवर पर वसन लुटाई ।
परमानंद नंद के आंगन, अमरगन पोहपन झर लाई ॥६