ऐसी मन माया को खेल हो जगत भुलानो मर्म में।
भ्रम भूले फूलै फिरे मन मिल करत विहार।
भूल भटक भ्रमत फिरै चेत न किया निहार हो।
जोगी जंगम सेवरा संन्यासी दरवेश।
जीव भुलानो मर्म में बिन गुरु के उपदेश हो।
ओंकार बंधन बधो सोहं में संन्यास।
कै रकार में भेष बहु होना सब्द विसंग हो।
मध्य पकर संवरे रहे हो निरपक्षी नहिं कोय।
निरपक्षी निरभै मतो यहिं अक्षर ते होय हो।
ठाकुरदास सतगुरु मिले हो दीनो शब्द लखाय।
जूड़ीराम आनंद दिल जो सुख कहो न जाय हो।