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वाह क्या हुस्न, कैसा जोबन है / मरदान अली ख़ान 'राना'

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वाह क्या हुस्न, कैसा जोबन है
कैसी अबरू<ref>भौंहें</ref> हैं, कैसा चितवन है

जिसको देखो वो नूर का बक़अ<ref>घर</ref>
ये परिस्तान<ref>परियों के रहने का स्थान</ref> है कि लंदन है

अबस<ref>बेकार/फ़िज़ूल में</ref> उनको मसीह कहते हैं
मार रखने का उनमें लच्छन<ref>लक्षण</ref> है

हुस्न दिखला रहा है जलवा-ए-हक़<ref>सच्चाई की तस्वीर</ref>
रू-ए-ताबाँ<ref>तेजस्वी चेहरा</ref> से साफ़ रौशन है

रस्म उल्टी है ख़ूब-रूयों<ref>ख़ूबसूरत लोग</ref> की
दोस्त जिसके बनो वो दुश्मन है

हाल उश्शाक़<ref>आशिक़</ref> को बताते हैं
और अभी ख़ैर से लड़कपन है

शब्दार्थ
<references/>