Last modified on 23 जून 2017, at 15:49

गुलसिताँ में आ गया कैसा ज़माना आजकल / बलबीर सिंह 'रंग'

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:49, 23 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बलबीर सिंह 'रंग' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गुलसिताँ में आ गया कैसा ज़माना आजकल,
दामने सैयाद में है आबोदाना आजकल।

ख़ल्क से मिटने को है क्या प्यार का नामोनिशां
क्यूँ कि हर शै की फ़ितरत मुज़रिमाना आजकल।

तल्खि़ए अय्याम में गुज़रा है दौरे इन्क़लाव,
शाम कहती में सबेरे का फ़साना आजकल।

जिनकी नज़दीकी में हमने काट दी तन्हाइयाँ,
ढूँढ़ते हैं उनसे मिलने का बहाना आजकल।

गुलसिताँ हों या बाग़वाँ सबको है इसका मलाल,
‘रंग’ ने कम कर दिया क्यों आना जाना आजकल।