Last modified on 15 फ़रवरी 2018, at 09:36

आख़िरी ख़त / विशाखा विधु

Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:36, 15 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विशाखा विधु }} {{KKCatKavita}} <poem> इक दिन लिखू...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इक दिन
लिखूंगी मैं
मेरा आखिरी ख़त
जिसमें होगीं
कुछ माफ़ी
जो दे ना सकूंगी
मैं जीते जी
और हाँ
होगी इक इच्छा
कि..
तुम थाम लो आकर
मेरी ठंडी हथेली
और थामे ही रखो
उस लम्हे तक
जब तक मिट न जाए
मेरा ये मलाल
कि ..
तुमने भी
कह दिया था
कि छोड़ दिया है हाथ मेरा..
दे जाऊँगी वो सारी दुआएं
विरसे में
जो सिर्फ और सिर्फ तुम्हें लगेंगी...।