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रात बढ़ती है तो चढ़ता है जुनूँ का दरिया / विकास शर्मा 'राज़'

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रात बढ़ती है तो चढ़ता है जुनूँ का दरिया
बैन करता है ये ख़ामोश-सा बहता दरिया

तुम किसी और ही धुन में थे सो ग़र्क़ाब हुए
वरना गहरा तो नहीं है ये बदन का दरिया

मुझमें आना तो ज़रा सोच-समझ कर आना
मुझमें सहरा है बहुत और है थोड़ा दरिया

फैलती जाती हैं इस शह्र की चिकनी बाहें
देखता रहता है चुपचाप सिमटता दरिया

हम नहीं जानते सहरा में जुनूँ के आदाब
प्यास लगती है तो कह उठते हैं दरिया दरिया

जिसकी लहरों ने बनाया था शनावर मुझको
याद आता है बहुत मुझको वो पहला दरिया