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बादलों ने आसमां में मंत्र फूंका / राम लखारा ‘विपुल‘

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बादलों ने आसमां में मंत्र फूंका
बूंद अमृत की बरसती जा रही है।

तप रही है यह धरा भी साधना में
दुख निवारण श्लोक जपती है निरंतर।
प्यास वृक्षों की नया विस्तार पाकर
नील नभ की ओर तकती है निरंतर।
आगमन का पत्र शायद मिल गया है
मन मयूरी नृत्य करती जा रही है।

खत्म होता जा रहा वनवास अपना
कोंपलों का भाग्य फिर से लौटता है।
ज्यों कि हर अभिशप्त मन जीवन सफर में
हर घड़ी पूजित चरण को खोजता है।
बढ रही है आस इक नूतन जनम की
दूरियां ज्यों ही सिमटती जा रही है।

बादलों ने आसमां में मंत्र फूंका
बूंद अमृत की बरसती जा रही है।