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विरहणी नायिका / रंजना सिंह ‘अंगवाणी बीहट’

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मुखड़ा

घटा घनघोर है काली,
पिया परदेश है आली।

अंतरा-1

विरह की वेदना जागी,
बदन में आग है लागी।
बलम परदेश जा भूले,
नहीं लागे कदम झूले।

सजी है दीप अब थाली
पिया परदेश है आली।

अंतरा- 2

लगे रोने, सखी नैना,
मिले कैसे, मुझे चैना।
नहीं पायल सजी पग में,
हँसी होती रही जग में।

लगे सूखा चमन माली,
पिया परदेश है आली।