Last modified on 21 अगस्त 2020, at 23:05

नंगों से दुनियाँ डरती है / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:05, 21 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुबह-सुबह से चड्डी उठकर,
बोली मुझको पहनो।
जाग हो गई सूरज आया,
अब नंगे न घूमो।

पापाजी ने लुंगी पहनी,
पहन लिया है कुरता।
कुरता लुंगी के कारण ही,
घर भर उनसे डरता।

दादीजी ने दादाजी को,
नया लुअर पहनाया।
इसी लुअर में मजे-मजे में,
बड़ा पार्क घुमवाया।

मुन्ना बोला मुझको तो बस,
नंगा रहना आता।
नंगों से दुनियाँ डरती है,
जन गण यही बताता।