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गालियाँ याद रहेंगी / पंकज परिमल

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सूक्तियाँ नहीं
गालियाँ याद रहेंगी
अधरों को ।

मंत्र से अधिक
याद
टेक की अर्धाली ।
दोहे पर आवृत्त
पंक्ति वो ही
जय-जय वाली ।।

कुछ मंत्रमुग्ध
उन्मादी भक्तों की
जिज्ञासा नहीं
तालियाँ रोक रखेंगी
अधरों को ।।

नृत्य को नहीं
देख नाच की
मादकता ।
वस्त्र मत देख
देख देह की
कामुकता ।।

कुछ आवरण
शेष होंगे अब भी
मुस्कानें नहीं
लालियाँ घेर रहेंगी
अधरों को ।।