Last modified on 7 अप्रैल 2022, at 22:38

आधा चंदा तेरी छत पर / चंदन द्विवेदी

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:38, 7 अप्रैल 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंदन द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आधा चंदा तेरी छत पर, आधा चंदा मेरे पास
आधे आधे होते सपने, आधी निद्रा का अभ्यास
आधा चंदा तेरी छत पर

आधेपन में पूरेपन का, यह कैसा आभास हुआ
आधे आधे से जीवन का आधा ही मधुमास हुआ
आधा चंदा तेरी छत पर

आधे शिव हैं आधी गौरा, अर्धनारीश्वर पूरा नाम
आधी आधी सांसों से ही पूरा होता प्राणायाम
आधा चंदा तेरी छत पर

आधे से ही जगत समझता पूरा हो जाएगा काम
यही अर्ध रचते रहते हैं नित नव रिश्तों का आयाम
आधा चंदा तेरी छत पर

आधे पलक झुका देती हो रुक जाती है पूरी सांस
आधे पलक उठा लेते ही मुट्ठी में पूरा आकाश
आधा चंदा तेरी छत पर

आधे खत पूरा किस्सा, आधार कहीं, प्राण कहीं
आधे खत का पूरा हिस्सा, जिस्म कहीं और जान कहीं
आधा चंदा तेरी छत पर

मां की जिद पर आधी रोटी खाने का जो स्वाद मिला
आधा डग मेरे चलने से पितु को जग आबाद मिला
आधी झुकी कमर दादी की दादा जी करते उपहास
आधे का सौंदर्य ये कैसा आधे में ही सबकी सांस
आधा चंदा तेरी छत पर