Last modified on 18 दिसम्बर 2022, at 23:56

सुब्ह का एहतिमाम भी ना हुआ / नवीन जोशी

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:56, 18 दिसम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन जोशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुब्ह का एहतिमाम भी ना हुआ,
रात का इंतिज़ाम भी ना हुआ।

प्यास जागी है क्यूँ चराग़ों की,
अभी तो वक़्त-ए-शाम भी ना हुआ।

ज़िंदगी कह रही थी "आ! जी ले!" ,
मुझसे इतना-सा काम भी ना हुआ।

कभी होने नहीं दी बदनामी,
सो हुआ ये कि नाम भी ना हुआ।

अपना घर छोड़ भी दिया मैंने,
तेरे दर पर क़याम भी ना हुआ।

क़िस्सा-ए-मुख़्तसर ही था लेकिन,
तू 'नवा' से तमाम भी ना हुआ।