Last modified on 2 मई 2023, at 17:26

पाँव में लगे आलते को / मनीष यादव

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:26, 2 मई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पाँव में लगे आलते को
देह का इंधन बना वह उड़ गई

एक हाथ से अम्मा के साड़ी की कोर पकड़े
खा रही है फिर से दूध-भात

पुष्प के मेघों की कामना उसके समक्ष है..

वृक्ष लताओं से प्रकृति के आलिंगन में लिपटी
खिलखिला रही है सखियों के संग

भाई को सिखला दिया है उसने चलाना साईकिल..

सुनाई देने लगी है उसे
अपने पसंदीदा नृत्य की पार्श्व ध्वनि!

नीले लाइनिंग की सफ़ेद चेक शर्ट में
वैसे ही लौट आया है उसका प्रेमी।

सांझ की तैरती धूप उसके आंखो में जाती है.
और ये क्या?

सहसा चकित होकर उठती है!
सोचती है –
“यह क्या अनाप-शनाप घटित हो रहा मस्तिष्क में”

फुलती सांसो को घोंटते हुए
ऑफिस का बैग टेबल पर रखती है

तभी प्रतीत होता है उसे किसी चलचित्र की भाँति
निहारा जा रहा है
बेटी को देख चेहरे पर प्रसन्नता का भाव लाए
रसोईघर की ओर बढ़ती है

पीछे से आवाज़ गूँजती है-मां क्या हुआ?
वो पलटकर उत्तर देती है-बस बीपी लो हो गया था!

मैं जानता हूँ
यह उत्तर उस माँ का था ,
उसके अंदर की स्त्री का नहीं।