Last modified on 1 अक्टूबर 2023, at 23:40

चारूस्मिता / प्रदीप शर्मा

Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:40, 1 अक्टूबर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चारूस्मिता, तेरा हास विमल,
ये अधरोष्ठ पाण्डुर–पाटल,
कवरी–कृष्ण–कुंंचित–कुंतल,
कोमल–कपोल कुसुमित–कोंपल,
मन में विकसित करते ये अनल।

चित् की उत्कण्ठा यह हर पल,
तुझे निर्निमेष देखूं अविरल।

चारू–चक्षु चंचल–खंजन
विद्युत–उपांग नटखट–लोचन
पलक–ओट अक्षी–नर्तन
लय–ताल सहित नूपुर–क्वणन
मन में पुष्पित हैं स्नेह–सुमन
श्वासों में है सुरभित चन्दन।

यह स्नेह–सिक्त स्वभाव सरल
क्या भ्रम मात्र ही है केवल?