Last modified on 10 फ़रवरी 2009, at 00:04

ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में / बशीर बद्र

सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:04, 10 फ़रवरी 2009 का अवतरण

ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में
माँगा था जिसे हम ने दिन रात दुआओं में

तुम छत पर नहीं आये मैं घर से नहीं निकला
ये चाँद बहुत लटका सावन कि घटाओं में

इस शहर में इक लड़की बिल्कुल है ग़ज़ल जैसी
फूलों की बदन वाली ख़ुशबू सी अदाओं में

दुनिया की तरह वो भी हँसते हैं मुहब्बत पर
डूबे हुये रहते थे जो लोग वफ़ाओं में