शौक़ से आए कोई मेहमान घर में।
हो न कोई खोट पर उसकी नज़र में।
रोज़ इक नयी तमन्ना ज़िन्दगी की
क्या पता, क्या-क्या छिपा है इस नहर में।
पूछते हैं हाल-ए-दिल अपना समझकर
लोग अच्छे भी तो मिलते हैं डगर में।
बोलिये तो बोलिये कुछ आप ऐसे
जैसे कहते हैं ग़ज़ल अच्छी बहर में।
कोई तो पाए तजुर्बा "प्राण" उनसे
कोई तो आए बुज़ुर्गों के असर में।