Last modified on 1 नवम्बर 2009, at 11:27

कबिरा तेरी चादरिया / अजय पाठक

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:27, 1 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कबिरा तेरी चादरिया का, जर्जर ताना बाना देखा।
मंदिर की हठधर्मी देखी, मस्जिद का ढह जाना देखा।

अलगू के हाथों में लाठी, जुम्मन की आँखों में शोले।
मज़हब के हाथों से, पावन रिश्तों का मर जाना देखा।

स्वारथ और सियासत चढ़कर सब के सिर पर बोल रही।
और लहू का धार-धार हो पानी-सा बह जाना देखा।

आदर्शों की हत्या करते, विश्वासी प्रतिमान दिखे।
मुंसिफ़ का मुल्ज़िम के घर तक, अक्सर आना जाना देखा।

सजी दुकानें ज्ञान-ध्यान की मठाधीश भौतिकवादी
अवतारी पुरुषों का, निरथक बातों से शरमाना देखा।

शील हरण से व्यथित द्रौपदी फूट-फूट कर रोती है।
पापी दुर्योधन के सम्मुख, अर्जुन का डर जाना देखा।