Last modified on 2 नवम्बर 2009, at 00:03

वसीयत / अज्ञेय

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:03, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरी छाती पर
हवाएं लिख जाती हैं
महीन रेखाओं में
अपनी वसीयत
और फिर हवाओं के झोंकों ही
वसीयतनामा उड़ाकर
कहीं और ले जाते हैं।

बहकी हवाओ !
वसीयत करने से पहले
हल्‍फ उठाना पड़ता है
कि वसीयत करने वाले के
होश-हवाश दुरूस्‍त हैं:
और तुम्‍हें इसके लिए
गवाह कौन मिलेगा
मेरे ही सिवा ?

क्‍या मेरी गवाही
तुम्‍हारी वसीयत से ज्‍यादा
टिकाऊ होगी ?