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बेटियाँ / शलभ श्रीराम सिंह

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छोड़ कर चली जाती है पत्नी
प्रेमिकाएँ चली जाती हैं छोड़ कर जब
चले जाते हैं छोड़ कर जब दोस्त-यार सारे के सारे
बेटियाँ हाथ थाम लेती हैं आगे बढ़ कर

जवान बेटों की नींद में व्यवधान होता है बाप
व्यवधान होता है बहुओं के निजी सुख में
अपने अकेलेपन में लहू लुहान
जीवित व्यवधान होता है बाप पूरे मकान के वजूद में

व्यवधान को मानकर आशीर्वाद
बेटियाँ सर पर बिठा लेती हैं
सजा लेती हैं आँखों में
पलकों पर उठा लेती हैं बेटियाँ
सब के सब छोड़ कर चले जाते हैं जब

रचनाकाल : 1993

शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।