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इतना क्या कम है ? / शलभ श्रीराम सिंह

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फूलों को खिलने में
मदद की तुमने
प्रकृति तुम्हारी शुक्रगुज़ार हुई

अन्धेरे को
एकांत का संगीत दिया तुमने
सपने कृतज्ञता से नत-मस्तक हुए तुम्हारे आगे

जीवन को
जीवन की तरह जी लिया तुमने
समय ने व्यक्त किया तुम्हारे प्रति आभार ,

तुम ही तुम रही हर जगह , हर बार
इतना क्या कम है ?


रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा