Last modified on 1 नवम्बर 2010, at 21:11

शरीर / आलोक धन्वा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:11, 1 नवम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


स्त्रियों ने रचा जिसे युगों में
युगों की रातों में उतने नि‍जी हुए शरीर
आज मैं चला ढूँढने अपने शरीर में।


1995