Last modified on 25 दिसम्बर 2019, at 21:32

अभी जाइये मत महफ़िल से / हरि फ़ैज़ाबादी

अभी जाइये मत महफ़िल से
महफ़िल सजती है मुश्किल से

क़ुदरत सबका नहीं सजाती
गोरा मुखड़ा काले तिल से

जब निकलेगा विष निकलेगा
अमृत नहीं निकलता बिल से

जीवन धीमा हो जायेगा
करें दोस्ती मत क़ाहिल से

खेल नहीं है उसे ढूँढ़ना
कस्तूरी को ढूँढ़े दिल से

कुछ तो मेरा साथ दीजिए
लौट आइयेगा साहिल से

पैर बड़ों के छूकर निकलें
हाथ मिलेंगे ख़ुद मंज़िल से