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उम्मीदों से दिल बर्बाद को आबाद करता हूँ / हरी चंद अख़्तर

उम्मीदों से दिल बर्बाद को आबाद करता हूँ
मिटाने के लिए दुनिया नई ईजाद करता हूँ

तिरी मीआद-ए-ग़म पूरी हुई ऐ ज़िंदगी ख़ुश हो
क़फ़स टूटे न टूटे मैं तुझे आज़ाद करता हूँ

जफ़ा-कारो मिरी मज़लूम ख़ामोशी पे हँसते हो
ज़रा ठहरो ज़रा दम लो अभी फ़रीयाद करता हूँ

मैं अपने दिल का मालिक हूँ मिरा दिल एक बस्ती है
कभी आबाद करता हूँ कभी बर्बाद करता हूँ

मुलाक़ातें भी होती हैं मुलाक़ातों के बाद अक्सर
वो मुझ को भूल जाते हैं मैं उन को याद करता हूँ