यह ठीक है
कि बहुत मामूली बहुत
साधारण-सी है यह हमारी लड़ाई
जिसमें जूझ रहे हैं हम
प्राणपन के साथ
और गहरे घावों से भर उठा है हमारा शरीर
हमारी आत्मा
इस विकट लड़ाई को
कोई क्या देखेगा हमारी अपनी आँखों से ?
निकालेंगे एक दिन लेकिन
हम साबुत इस्पात की तरह पानीदार
तपकर इस कठिन आग में से
अगले किसी महासमर के लिए ।