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ख़ाक़ में मिल गये गुलसिताँ कैसे-कैसे / बलबीर सिंह 'रंग'

खा़क में मिल गये गुलसिताँ कैसे-कैसे,
वे सबब जल गये आशियाँ कैसे-कैसे।

बेनियाज़ी मुहब्बत से बेगानगी,
आदमी के हुये तर्जुमा कैसे-कैसे।

लाख कोशिश की पहुँचे न मंजिल तलक,
राह में गुम हो गये कारवाँ कैसे-कैसे।

अनलहक़ कह के मंसूर सूली चढ़ा,
दोस्तों के लिये इम्तिहाँ कैसे-कैसे।

अंजुमन में भी जो तनहा-तनहा रहे,
‘रंग’ तुमको मिले मेहरबाँ कैसे-कैसे