तुमने हँस के जो देखा ज़रा-सा मुझे,
हर तरफ़ चाँदनी की फ़सल हो गई ।
एक पल के लिए भी जो रूठ गए
अपनी साँस भी मुझको गरल हो गई ।
तुम हमसे मिले, मिल कर बिछुड़े,
हमें कविता की भाषा सरल हो गई ।
सुख के-दुख के यूँ शेर मिले,
ज़िन्दगी एक मुकम्मल ग़ज़ल हो गई ।