Last modified on 4 नवम्बर 2009, at 22:51

दरमियाँ / अभिज्ञात

अभी तो दरमियाँ फ़ासलो के जंगल है
अभी आगाज़ से पहले भी कई मुश्किल है

अपनी हर हाल में मर जाने की तमन्ना है
मिले ये चैन कि अपना-सा कोई क़ातिल है

एक हम हैं कि कभी वास्ता नही रखते
कि अपने सामने मायूस अपनी मंज़िल है