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दूर से ही हाथ जोड़े हमने ऐसे ज्ञान से / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

दूर से ही हाथ जोड़े हमने ऐसे ज्ञान से
जो किसी व्यक्तित्व का मापन करे परिधान से
 
डगमगाते हैं हवा के मंद झोंकों पर ही वो
किस तरह विश्वास हो टकराएँगे तूफ़ान से
 
देखकर चेहरा कठिन है आदमी पहचानना
है कहानी क्या, पता चलता नहीं उन्वान से
 
मूँद लीं आँखें हमी ने उनको कुछ लज्जा नहीं
बीच चौराहे पे वो नंगे खड़े हैं शान से
 
जो तुम्हें औरों को देना था वो क्या तुम दे चुके
हाँ में हो उत्तर तो फिर कुछ माँगना भगवान से
 
इतना धन मत जोड़ ले हो परिचितों से शत्रुता
जान का ख़तरा रहेगा खुद की ही संतान से
 
तितलियों को काग़ज़ी फूलों ने सम्मोहित किया
ऐ 'अकेला' फूल असली रह गए हैरान से