Last modified on 22 जून 2017, at 13:27

देश मजे में / शिवशंकर मिश्र

देश मजे में चल रहा,
मस्ती में सरकार,
बाबू-अफसर सारे बम-बम,
वेतन कई हजार;

वेतन कई हजार,
कई ऊपर से आते,
चपरासी को
बड़े-बड़े आदाब बजाते;

बड़े-बड़े आदाब बजाते,
चक्कर काटें, घूमें,
पाँवों पर थैलियाँ चढ़ाएँ,
तलवे चाटें, चूमें;

तलवे चाटें, चूमें,
चलती बल खाती हर फाइल,
आँखों-आँखों लक्ष्य साधती,
होठों-होठों स्माइल;

होठों-होठों स्माइल,
चढ़ता पानी पेटों-पेटों,
ऊँचे जाता है बापों तक
चलकर बेटों-बेटों;

चलकर बेटों-बेटों,
लम्बा उन का मायाजाल,
लाल कलम से करते काला,
काली से सब लाल;

काली से सब लाल,
करें रेखाएँ छोटी,
लाठी उन की, भैंस उन्हीं की,
अपनी मुश्किल रोटी;

अपनी मुश्किल रोटी,
चाहे जिस की हो सरकार,
मस्त बाढ़-सूखे में वे हैं,
हम बेबस लाचार;

हम बेबस, लाचार,
नहीं अपना है कोई लाग,
जाने कब जागेगा भैया,
मिहनत कश का भाग!