Last modified on 27 फ़रवरी 2024, at 22:19

धूप धरा पर / नामवर सिंह

धमनी सी धड़कती नदी उन्मादिनी
नीलम जल से उठती भाप सुहावनी
जौ की बालों के उद्भासित टूँड़ पर
पार उषा की बिन्दी उगी सुहासिनी

शिशु की आँखों से नीलोज्वल व्योम में
सरिता के उजले नीले दृग व्योम में

टूट रही धुएँ की पतली लीक-सी
धूप धरा पर जल-सी बढ़ती आ रही
आँखों में जाने कैसी है भीख-सी ।