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वही तग़ाफ़ुल हुई दुबारा वही तकल्लुफ़ फिर इस सफ़र में / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर

वही तग़ाफ़ुल हुई दुबारा वही तकल्लुफ़ फिर इस सफ़र में
वही क़यामत वही तबाही कोई रियायत नहीं क़हर में

कभी तो अपने गुनाह क़बूले कभी तो झांके गरेबाँ खुद का
मेरी तसल्ली मुझे है काफ़ी नहीं कमी कुछ मेरे हुनर में

लहू से लिपटी हैं मेरी साँसे ज़बाँ पे मेरी क़ुफ़ल चढ़े हैं
तुम्ही का है सब किया कराया तुम्ही हो मुज़रिम मेरी नज़र में

तुम्हारी ज़िद क्या हमेशा जायज़, है, थी रहेगी हमेशा जायज़
न हो सका की मर ही जाता मिली मिलावट मुझे ज़हर में