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"मजबूरी" क्षणिकाएँ-1/रमा द्विवेदी

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१- मजबूरियों का,
अन्तहीन सिलसिला,
आत्मदाह के लिए ,
जैसे घी की आहुति।

२- कहते हैं लोग,
आत्महत्या कायरता है,
लेकिन जिल्लतभरी ज़िन्दगी,
उससे भी बड़ी कायरता है|

३- कोई भी सख्स,
यूँ ही आत्यहत्या नहीं करता,
कोई तो मजबूरी होगी?
जो ज़िन्दगी से बड़ी होगी।

४- ज़िन्दगी की मजबूरियों ने,
ज़ज़्बातों और अहसासों की,
हत्या कर दी।

५- मजबूरियों की गहरी खाई,
हर रास्ते की नाकाबंदी,
न फ़रियादी ,
न फ़रियाद सुनने वाला,
तभी उसने आत्महत्या की होगी,
ताकि ईश्वर के दरबार में,
अपनी बेटी के जीवन के लिए,
फ़रियाद तो कर सके।