भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
'ज्ञान' क्या ले गए और क्या दे गए / ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'
Kavita Kosh से
'ज्ञान' क्या ले गए और क्या दे गए।
दर्दो गम का हमें सिलसिला दे गए।
कह रहे थे रहेंगे सदा आपके,
वक़्ते मुश्किल में लेकिन दगा दे गए।
ख़्वाब में भी कभी सोच पाए न हम,
जिस तरह का हमें फासला दे गए।
ख़ास या आम पर यूँ न करना यकीं,
इस तरह का हमें मशविरा दे गए।
प्यार की शीशियों में भरा ज़ह्र था,
'ज्ञान' को मुस्कुराकर दवा दे गए।